सूरदास जी का जीवन परिचय (कक्षा -10)| Biography of Surdas in Hindi jeevan parichay-Gyaniji

सूरदास (1478-1583) 16वीं सदी के अंधे हिंदू भक्ति कवि और गायक थे, जो सर्वोच्च भगवान कृष्ण की प्रशंसा में लिखे गए अपने कार्यों के लिए जाने जाते थे। वह भगवान कृष्ण के वैष्णव भक्त थे, और वह एक श्रद्धेय कवि और गायक भी थे। उनकी रचनाओं ने भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का महिमामंडन किया और उसे दर्शाया। उनकी अधिकांश कविताएँ ब्रज भाषा में लिखी गईं, जबकि कुछ मध्यकालीन हिंदी की अन्य बोलियों, जैसे अवधी, में भी लिखी गईं।

सूरदास का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा के पास रुनकता गाँव में हुआ था। वह जन्म से अंधे थे, लेकिन इसने उन्हें एक अत्यंत निपुण कवि और गायक बनने से नहीं रोका। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वेदों और अन्य धर्मग्रंथों का पाठ सुनकर उन्हें सीखा था। उन्होंने गाना और वीणा बजाना भी सीखा।

सूरदास के पिता सूरजचंद एक धनी व्यापारी थे। सूरजचंद एक कट्टर वैष्णव थे और उन्होंने सूरदास का पालन-पोषण धार्मिक माहौल में किया। सूरदास छोटी उम्र से ही कृष्ण की कहानियों से परिचित हो गए थे और उनके मन में कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम विकसित हो गया।

सूरदास ने बचपन से ही कृष्ण की प्रशंसा में कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताएँ इतनी सुंदर और मार्मिक थीं कि उन्होंने महान वैष्णव संत वल्लभाचार्य सहित कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया। वल्लभाचार्य सूरदास की भक्ति और प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया।

IMAGE OF SURDAS

वल्लभाचार्य के मार्गदर्शन में सूरदास की कृष्ण भक्ति और भी अधिक मजबूत हो गई। उन्होंने कृष्ण की प्रशंसा में कई और कविताओं की रचना की और एक कवि और गायक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। उन्हें “ब्रज के अंधे संत” के रूप में जाना जाने लगा (माना जाता है कि ब्रज मथुरा के आसपास का क्षेत्र है जहां कृष्ण रहते थे)।

सूरदास की कविताएँ कृष्ण के प्रति प्रेम और लालसा से भरी हैं। उन्होंने कृष्ण की सुंदरता, उनके चंचल स्वभाव और सभी जीवित प्राणियों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन किया है। सूरदास के पद भी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण हैं। उन्होंने ईश्वर के स्वरूप, मुक्ति के मार्ग और भक्ति के महत्व का वर्णन किया है।

सूरदास की कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है और आज भी व्यापक रूप से पढ़ा और आनंद लिया जाता है। उन्हें भक्ति आंदोलन के महानतम कवियों में से एक माना जाता है और उनके काम का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

यहाँ सूरदास की कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ हैं:

सूरसागर (सूरदास का सागर): यह सूरदास की महान रचना है, और इसे हिंदी साहित्य की सबसे महान कृतियों में से एक माना जाता है। यह कृष्ण की प्रशंसा में 10,000 से अधिक कविताओं का संग्रह है।


भक्तमाल (भक्तों की माला): यह 63 वैष्णव संतों की जीवनियों का संग्रह है, जिनमें स्वयं सूरदास भी शामिल हैं।
गिरिधारी स्तोत्र (गिरिधारी के लिए भजन): यह कृष्ण की स्तुति में एक भजन है, जिन्हें गिरिधारी (पर्वत धारण करने वाले) के नाम से भी जाना जाता है।


मोहन भवन (प्रिय का घर): यह गोकुल में कृष्ण के बचपन के बारे में एक कविता है।
कृष्ण रसिकप्रिया (कृष्ण, रस के प्रेमी): यह राधा और अन्य गोपियों के प्रति कृष्ण के प्रेम के बारे में एक कविता है।
सूरदास की कृतियाँ हिन्दी साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना है और कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रमाण है। उनकी कविताएँ प्रेम, लालसा और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से भरी हैं, और उन्हें दुनिया भर के लोगों द्वारा पढ़ा और आनंद लिया जाता है।

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